कठोपनिषद-1.1.1

कठोपनिषद के पहले शोक में तीन पीढ़ियों का वर्णन है- वाजश्रवा, वाजश्रवस और नचिकेता। वाजश्रवा नाम का एक व्यक्ति जिसका पुत्र था वाजश्रवस जिसने विश्वजीत यज्ञ किया, यज्ञ करने के बाद बहुत सारा दान दिया।

अभी यज्ञ का नाम ही बता रहा है कि यज्ञ और दान दिया गया है कुछ पाने के लिए यज्ञ किया गया है विश्व जीतने के लिए और दान दिया गया है अपना यश अपनी कीर्ति बढ़ाने के लिए। 

आज भी यह कितना प्रासंगिक है सोचिए हमारे देश में एक बहुत बड़े करोड़पति व्यापारी करोड़ों रुपए का इन्वेस्टमेंट करके एक बहुत बड़ा जंगल गोद लेते हैं उसमें करोड़ों रुपए का इंफ्रास्ट्रक्चर लगाते हैं नेचर बचाने की बातें करते हैं और उसके साथ में अरबो रुपए खर्च करके अपने पुत्र का विवाह करते हैं यह सब कुछ किस लिए? आप समझदार हो खुद मंथन कीजिए।

बहुत साधारण है अहम के लिए चाहना। कुछ न चाहना असंभव है अहम के लिए। अहम कुछ ना कुछ पाने की चेष्टा में हमेशा रहता है जो कि असल में वहम ही होता है, वहम जिससे कामना के साथ कपट भी आ जाता है।

कामना अपनी पूर्ति के लिए कपट को अनिवार्य ही बना लेती है। बहुत सरल होते हैं वह लोग जो अपनी कामना को सीधा-सीधा प्रकट कर लेते हैं। असल में कामना छोड़ने से पहले कामना के प्रति सरल व्यवहार- यानी कि कपट का कोई प्रयोग नहीं- वही अपने प्रति बेहतरी का एक लक्षण है। कामना के प्रति सरल होने का आशय है कामना के तथ्य को स्वीकार कर लिया और कह दिया कि "हां भाई कामना है!

अब यह कामना कपट का प्रयोग क्यों लेती है? क्योंकि कामना ने अपना यथार्थ जान लिया है अगर अपना तथ्य बता दिया कामना ने तो उसे पता है कि कभी कामना पूर्ति नहीं होगी।

उदाहरण के लिए आपको कोई महिला सुंदर लगती है, उसके जिस्म के प्रति आप आकर्षित होते हैं, आप सच्चाई में उसे महिला से क्या चाहते हैं- यह आपकी अंतरात्मा जानती हैं लेकिन आप उसे महिला से अच्छी-अच्छी मीठी-मीठी बातें करते हैं मित्रता बनाते हैं, उसके साथ संबंध बनाने की कोशिश करते हैं, उसके बाद आप उससे रिश्ता बनाते हैं और आखिर में आप अपनी कामना पूर्ति करते हैं। असल में तो यह भी कपट ही है!

जो व्यक्ति अपनी कामना को सीधे-सीधे स्वीकार करने लगे वह असल में कामना से मुक्ति की ओर बढ़ रहा है।

कपट भी दो प्रकार के होते हैं- पहले कपट जिसमें चाहिए लेकिन अभिव्यक्त नहीं करूंगा कि मुझे चाहिए और दूसरा कपट चाहिए तो है लेकिन बोलते हैं कि मैं तो दे रहा हूं जैसे यहां पर नचिकेता के पिता यज्ञ करके दान करके कुछ देने की बात कर रहे हैं।

अज्ञान से आती है अपूर्णता। अपूर्णता को पूरा करने के लिए आप में कामना होती है। और कामना को पूरा करने के लिए आपको कपट का सहारा लेना पड़ता है।

नचिकेता वाजश्रवस का पुत्र जो की एक छोटा सा बच्चा है वह यह सब बातें नहीं समझता और कुछ प्रश्न पूछता है। उन प्रश्नों पर हम और गहराई में चर्चा करेंगे लेकिन उससे पहले यह समझने की कोशिश कीजिए कि कठोपनिषद में तीन पीढ़ियों का उल्लेख किया गया है- यह बताता है कि हम कई वर्षों से स्वयं को मूर्ख बना रहे हैं लेकिन इस बार कुछ अलग हो जाता है दादा का पौत्र नचिकेता धारा प्रवाह (प्रकृति) से अलग प्रतीत होता है।

अब कई मूर्ख लोग यह कहते हैं कि नचिकेता अलग है- धारा प्रवाह से अलग प्रतीत हो रहा है, तो जरूर यह कोई प्रकृति का अजूबा है, अवतार है। लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। प्रकृति (धारा प्रवाह) में कुछ नहीं बदलता, जो सदियों से चला आ रहा है वही चलता रहता है। यदि कुछ बदलता है तो वह है केवल 'चेतना का चुनाव चुनाव'।

उदाहरण के रूप में समझिए- आप रोज यह सोचकर सोते हैं कि मैं सुबह जिम जाऊंगा, अब जिम वहीं है, जिम के इक्विपमेंट भी वहीं है, आपकी अलार्म भी वहीं है, आपका बिस्तर भी वहीं है, और आप भी वहीं है। लेकिन कई हफ्तों तक आप सोचते हैं- "जाऊंगा जाऊंगा जाऊंगा" और एक दिन आपने ठान लिया और आप चले गए। अब इसमें प्रकृति में कुछ नहीं बदला, अब इसमें कोई अजूबा नहीं हुआ, अब इसमें कोई चमत्कार नहीं हुआ, किसी अवतार ने आपको आकर जगा नहीं दिया। यह आपकी 'चेतना का एक चुनाव' है 'एक महत्वपूर्ण चुनाव' जिसकी वजह से आप उसी एक दिन उठे और वहां से जिम जाना शुरू किया। अब कई लोगों के दिमाग में होता है- यह चेतना में चुनाव करने की क्षमता आई कहां से?

चेतना में चुनाव करने की क्षमता आती है चेतना के स्वभाव से और चेतना का एकमात्र स्वभाव है "मुक्ति"। मुक्ति का कोई कारण नहीं होता मुक्ति करण बध नहीं होती- कारण केवल बंधनों के होते हैं।

कामना भी आपके सामने एक विकल्प की तरह ही आती है आपके पास फैसला होता है की कामना चुननी है या नहीं? बेईमानी अगर मजबूरी होती विकल्प नहीं होता तो बेईमानी की कोई सजा भी नहीं होती।

नचिकेता के पिता ने दान में भी धूर्तता क्यों करी?

नचिकेता तो बच्चा है, उत्सुकता के भाव में गया पिता के पास जानने की वह क्या कर रहे हैं। अब यहां नचिकेता अवलोकन कर रहे हैं जिससे निकलेगा यथार्थ/तथ्य।

जो बात नचिकेता को देख रही है वह पिता को भी दिख रही है बस पिता ने धूर्तता का चुनाव किया है जिसके पीछे कोई कारण नहीं है।

यह दर्शाता है की चेतना स्वतंत्र है- स्वतंत्रता को चुनने के लिए भी, बंधनों को चुनने के लिए भी, परतंत्रता को चुनने के लिए भी चेतना स्वतंत्र है।

चेतन बंधन में भी इसीलिए है क्योंकि वह बंधन में नहीं है। इससे यह सिद्ध होता है की चेतना है तो मुक्त ही बस मुक्ति का दुरुपयोग कर गई।

कभी आपसे कुछ अनजाने में नहीं हो सकता।

पिता और नचिकेता का चुनाव विपरीत क्यों है? उनकी मर्जी! उनका चुनाव!

कार्य और कारण में उलझोगे तो कुछ हासिल नहीं होगा, अहंकार जब पकड़ा जाना होता है तो भीतर ही भीतर स्वयं को उलझा देता है। अहंकार उलझाना बहुत अच्छे से जानता है।

कठोपनिषद एक अहम ग्रन्थ है जिसका मार्मिक ज्ञान हमे होना चाहिए, और ये ज्ञान भी केवल एक बार नहीं बार बार हमे मिलना चाहिए ताकि जीवन में हम सही निर्णय लेने की क्षमता बना पाए। कठोपनिषद के साथ साथ इस ब्लॉग पर मैं वेदांत, ताओ उपनिषद, गीता, गुरुग्रंथ, कबीर दोहें, और सत्यार्थ प्रकाश जैसे अहम ग्रंथों का मार्मिक ज्ञान आसान भाषा में देने का प्रयास करूँगा। आज के ब्लॉग से आपकी सबसे बड़ी सीख क्या रही, कमेंट में ज़रूर लिखें और अपने सुझाव भी साझा करें। 

ओ३म् नमस्ते 

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