कठोपनिषद के पहले शोक में तीन पीढ़ियों का वर्णन है- वाजश्रवा, वाजश्रवस और नचिकेता। वाजश्रवा नाम का एक व्यक्ति जिसका पुत्र था वाजश्रवस जिसने विश्वजीत यज्ञ किया, यज्ञ करने के बाद बहुत सारा दान दिया।
अभी यज्ञ का नाम ही बता रहा है कि यज्ञ और दान दिया गया है कुछ पाने के लिए यज्ञ किया गया है विश्व जीतने के लिए और दान दिया गया है अपना यश अपनी कीर्ति बढ़ाने के लिए।
आज भी यह कितना प्रासंगिक है सोचिए हमारे देश में एक बहुत बड़े करोड़पति व्यापारी करोड़ों रुपए का इन्वेस्टमेंट करके एक बहुत बड़ा जंगल गोद लेते हैं उसमें करोड़ों रुपए का इंफ्रास्ट्रक्चर लगाते हैं नेचर बचाने की बातें करते हैं और उसके साथ में अरबो रुपए खर्च करके अपने पुत्र का विवाह करते हैं यह सब कुछ किस लिए? आप समझदार हो खुद मंथन कीजिए।
कामना अपनी पूर्ति के लिए कपट को अनिवार्य ही बना लेती है। बहुत सरल होते हैं वह लोग जो अपनी कामना को सीधा-सीधा प्रकट कर लेते हैं। असल में कामना छोड़ने से पहले कामना के प्रति सरल व्यवहार- यानी कि कपट का कोई प्रयोग नहीं- वही अपने प्रति बेहतरी का एक लक्षण है। कामना के प्रति सरल होने का आशय है कामना के तथ्य को स्वीकार कर लिया और कह दिया कि "हां भाई कामना है!
अब यह कामना कपट का प्रयोग क्यों लेती है? क्योंकि कामना ने अपना यथार्थ जान लिया है अगर अपना तथ्य बता दिया कामना ने तो उसे पता है कि कभी कामना पूर्ति नहीं होगी।
उदाहरण के लिए आपको कोई महिला सुंदर लगती है, उसके जिस्म के प्रति आप आकर्षित होते हैं, आप सच्चाई में उसे महिला से क्या चाहते हैं- यह आपकी अंतरात्मा जानती हैं लेकिन आप उसे महिला से अच्छी-अच्छी मीठी-मीठी बातें करते हैं मित्रता बनाते हैं, उसके साथ संबंध बनाने की कोशिश करते हैं, उसके बाद आप उससे रिश्ता बनाते हैं और आखिर में आप अपनी कामना पूर्ति करते हैं। असल में तो यह भी कपट ही है!
जो व्यक्ति अपनी कामना को सीधे-सीधे स्वीकार करने लगे वह असल में कामना से मुक्ति की ओर बढ़ रहा है।
कपट भी दो प्रकार के होते हैं- पहले कपट जिसमें चाहिए लेकिन अभिव्यक्त नहीं करूंगा कि मुझे चाहिए और दूसरा कपट चाहिए तो है लेकिन बोलते हैं कि मैं तो दे रहा हूं जैसे यहां पर नचिकेता के पिता यज्ञ करके दान करके कुछ देने की बात कर रहे हैं।
अज्ञान से आती है अपूर्णता। अपूर्णता को पूरा करने के लिए आप में कामना होती है। और कामना को पूरा करने के लिए आपको कपट का सहारा लेना पड़ता है।
नचिकेता वाजश्रवस का पुत्र जो की एक छोटा सा बच्चा है वह यह सब बातें नहीं समझता और कुछ प्रश्न पूछता है। उन प्रश्नों पर हम और गहराई में चर्चा करेंगे लेकिन उससे पहले यह समझने की कोशिश कीजिए कि कठोपनिषद में तीन पीढ़ियों का उल्लेख किया गया है- यह बताता है कि हम कई वर्षों से स्वयं को मूर्ख बना रहे हैं लेकिन इस बार कुछ अलग हो जाता है दादा का पौत्र नचिकेता धारा प्रवाह (प्रकृति) से अलग प्रतीत होता है।
अब कई मूर्ख लोग यह कहते हैं कि नचिकेता अलग है- धारा प्रवाह से अलग प्रतीत हो रहा है, तो जरूर यह कोई प्रकृति का अजूबा है, अवतार है। लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। प्रकृति (धारा प्रवाह) में कुछ नहीं बदलता, जो सदियों से चला आ रहा है वही चलता रहता है। यदि कुछ बदलता है तो वह है केवल 'चेतना का चुनाव चुनाव'।
उदाहरण के रूप में समझिए- आप रोज यह सोचकर सोते हैं कि मैं सुबह जिम जाऊंगा, अब जिम वहीं है, जिम के इक्विपमेंट भी वहीं है, आपकी अलार्म भी वहीं है, आपका बिस्तर भी वहीं है, और आप भी वहीं है। लेकिन कई हफ्तों तक आप सोचते हैं- "जाऊंगा जाऊंगा जाऊंगा" और एक दिन आपने ठान लिया और आप चले गए। अब इसमें प्रकृति में कुछ नहीं बदला, अब इसमें कोई अजूबा नहीं हुआ, अब इसमें कोई चमत्कार नहीं हुआ, किसी अवतार ने आपको आकर जगा नहीं दिया। यह आपकी 'चेतना का एक चुनाव' है 'एक महत्वपूर्ण चुनाव' जिसकी वजह से आप उसी एक दिन उठे और वहां से जिम जाना शुरू किया। अब कई लोगों के दिमाग में होता है- यह चेतना में चुनाव करने की क्षमता आई कहां से?
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