पानी में मीन प्यासी का अर्थ है कि वो प्यासी है ही नहीं, वो व्यर्थ ही प्यासी है। पानी में जो मीन है, पानी में जो मछली है वो पानी से अलग थोड़े ही है। तुम मुझे बताओ पानी में, पानी से अलग कुछ कहाँ से पैदा हो जाएगा? पानी में जो भी कुछ होगा वो पानी का ही तो एक आकार होगा न? पानी का ही तो एक रूप होगा?
हम जानते हैं कि हम क्या हो सकते थे। जो हम हो सकते थे वो हमारे दिल में बैठा है और शरीर इसलिए था ताकि हम जो हो सकते थे उसकी अभिव्यक्ति हो एक्सप्रेशन (अभिव्यक्ति) हो। लेकिन हम शरीर से ऊपर उठ ही नहीं रहे।
जो कुछ भी हम रोज़ कर रहे होते हैं वो सिर्फ शरीर के लिए ही कर रहे होते हैं।
शरीर तो पशुओं का भी चल जाता है, पेड़ पौधे जमीन से बंधे हुए होते हैं खाना उनको भी मिल जाता है कोई प्रजाति पृथ्वी पर प्रकृति ने ऐसी नहीं पैदा करी जो पैदा तो होती है पर अपना शारीरिक निर्वाह नहीं कर सकती। जिनके पास बुद्धि नहीं है शरीर उनका भी चल जाता है, जिन प्राणियों के पास हाथ पांव नहीं है शरीर उनका भी चल जाता है। जिनकी आंखें नहीं होती उनका भी चल जाता है, जिनके ना आंखें होती है ना कान होते हैं उनका भी चल जाता है। जो ऐसी जगह पर पैदा होते हैं जहां उनके 10 प्रकार के भक्षक दुश्मन होते हैं शरीर तो उनका भी चल जाता है। जो इतने छोटे होते हैं की हवा भी उन्हें उड़ा ले जाए और कोई उनके धोखे से छू ले तो भी मर जाए वह सब भी चलते रहते हैं उनका भी निर्वाह हो जाता है।
हमारी हस्ती के दो तल मान लें शारीरिक और मानसिक, तो शरीर के निर्वाह की बात तो बड़ी होनी ही नहीं चाहिए। भूखे मरने की बात होती अगर, तो जन्म ही नहीं हुआ होता। यहां बात प्राकृतिस्थ जीवों की हो रही है मनुष्यों की नहीं। कभी सुना है कि पहाड़ में पैदा हुए जीव गर्म हवा पानी के लिए नीचे आते हैं? उन्हें गर्मी वहीं पहाड़ पर मिल जाती है।
प्रकृति ने सब की व्यवस्था कर रखी है जैसी प्रकृति है उस प्रकृति के अनुसार वहां व्यवस्था कर रखी होती है। तुम्हारा पैदा होना ही प्रकृति का चमत्कार होता है और जैसे ही प्राकृतिक स्थितियां, थोड़ी भी बदल जाए तो तुम पैदा ही नहीं होंगे। आप यूं ही नहीं पैदा हो गए हैं आप इस जमीन से आए हो और आप जमीन की ही अभीव्यक्ति हो और जमीन कभी आपकी दुश्मन नहीं हो सकती अगर आप जमीन को अपना दुश्मन मानते हैं तो यह उसी प्रकार है जैसे पत्ता बोल रहा है कि पेड़ उसका दुश्मन है। आप इसी मिट्टी के विस्तार हो। इंसान को अगर लगता है की प्रकृति दुश्मन है तो वह प्रकृति के खिलाफ 100 साजिश भी करने लगता है। यह सब इसलिए होता है क्योंकि हम यह नहीं मानते कि हम मिट्टी से उठे हुए हैं। हम यह मानते हैं किसी ईश्वर ने हमें पैदा किया है। सारा खेल गलत फिलोसोफी का है।
यह अति घातक विश्वास है कि हम कोई और है हम यहां आ गए हैं पृथ्वी हमारे लिए बस एक शरण स्थली है, सराय है। यह चेक इन चेक आउट वाला मॉडल इस प्रकार है की कोई होटल को घर नहीं मानता। होटल में जितनी मौज मार सको मार लो उतनी ही मौज आप यहां पृथ्वी पर मार रहे हैं। यह है गलत फिलोसोफी, इस गलत फिलोसोफी का अंजाम समझो यह ऐसा बिलीफ सिस्टम जिंदगी तबाह कर देगा। जब तक आप यह नहीं मानोगे कि आप मिट्टी हो तब तक आप पृथ्वी का प्रकृति का शोषण ही करोगे।
पश्चिम में माइंड वर्सेस मैटर एक थ्योरी चलती है लेकिन वेदांत इसको ठुकरा देता है। पेड़ किस लिए ताकि तुम लकड़ी ले लो नदी किस लिए ताकि तुम नदी से पानी ले लो और बकरा किस लिए ताकि तुम बकरे से मांस ले लो। यह नहीं समझते हो कि पेड़ काटने से पेड़ को तो नुकसान होना ही है और तुमको भी होना है क्योंकि तुम खुद भी पेड़ ही हो। हम जो कुछ भी कर रहे हैं वह किसी न किसी फिलोसोफी का नतीजा होता है हम बर्बाद क्यों हैं क्योंकि हमारी फिलासफी ही खराब है।
जड़ चेतन सब प्रकृति में ही सम्मिलित है। क्योंकि हम यह नहीं मानते कि हम पृथ्वी ही है फिर जीवन का जो दूसरा तल (मन) है उस पर हम बहुत डरे रहते हैं, तनाव में रहते हैं। मनुष्य से ज्यादा असुरक्षित इनसिक्योर और कोई नहीं है।
किसी ईश्वर पर विश्वास करने की जरूरत नहीं है तुम प्रकृति पर विश्वास कर लो उतना ही काफी है, अमर हो जाओगे। प्रकृति ही काफी है, किसी कल्पना की क्या जरूरत है प्रकृति तो तथ्य है ना सामने है। इस पृथ्वी पर केवल भारतीय हैं जिन्होंने प्रकृति को अपनी मां बोला है।
इसका अर्थ यह नहीं है कि जैसे जीव प्रकृति माता की गोद में संतुष्ट है वैसे ही मनुष्य को भी संतुष्ट हो जाना चाहिए, कोई प्रगति नहीं करनी चाहिए। प्रगति करो! उसमें कोई दिक्कत नहीं है लेकिन सबसे पहले मूल मान्यता को ठीक करो अगर मूल मान्यता ठीक हो गई तो उसके बाद हुई प्रगति अलग स्तर पर होगी।
दर्शन सत्य के लिए होता है और TRUTH IS ABOVE ALL GODS!
कबीर दोहे अहम है जिसका मार्मिक ज्ञान हमे होना चाहिए, और ये ज्ञान भी केवल एक बार नहीं बार बार हमे मिलना चाहिए ताकि जीवन में हम सही निर्णय लेने की क्षमता बना पाए। कबीर दोहे के साथ साथ इस ब्लॉग पर मैं वेदांत, ताओ उपनिषद, अष्टावक्र गीता, गुरुग्रंथ, गीता, और सत्यार्थ प्रकाश जैसे अहम ग्रंथों का मार्मिक ज्ञान आसान भाषा में देने का प्रयास करूँगा। आज के ब्लॉग से आपकी सबसे बड़ी सीख क्या रही, कमेंट में ज़रूर लिखें और अपने सुझाव भी साझा करें।
Comments
Post a Comment